यह पुस्तक माता रानी के हर रंग रूप को सामने रखकर ही लिखी गई है। कवि के लिए माता रानी के किसी नाम व रुप में भेद नहीं है। एसी कृपा कवि पर माँ की है। हर दोहा माता रानी से बात चीत के रूप में है। पूरी पुस्तक में दोहे के सिवा और कुछ नहीं है। अगर कोई प्रश्न हो तो उस का उत्तर भी माँ के पास ही है। इस में केवल माँ के प्यार का ही पता चलता है।
यह पुस्तक बताती है की कवि का माँ से कितना प्यार है। यह भी पता चलता है की कवि को बस केवल माँ से ही सच्ची श्रद्धा और विश्वास व प्यार है। इस पुस्तक से किसी को कुछ मिले न मिले। किसी के वश में कुछ नहीं है। जैसा आत्म ज्ञान माँ से मिला कवि लिखता गया। कवि तो माँ की ही एक माया है। जैसे वह चलाए, वैसा ही उसने चलना है।